लखनऊ: अपने समय के रूमानी और क्रांतिकारी शायर मजाज़ की 68वीं जयंती के अवसर पर एएमयू ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन लखनऊ ने निशातगंज कब्रिस्तान, पेपर मिल कॉलोनी स्थित उनकी क़ब्र पर फ़ातिहा का आयोजन किया गया। एसोसिएशन के मानद सचिव इंजीनियर एस एम शोएब ने इस अवसर पर उपस्थित अलीग समुदाय और अन्य उर्दू प्रेमियों को संबोधित करते हुए कहा कि असरारुल हक़, जो मजाज़ लखनवी के नाम से मशहूर हैं, एक प्रमुख अलीग थे, जिनकी सन् 1933 में नज़्र-ए-अलीगढ़ नामक लिखी गई कविता 1954 में एएमयू का प्रसिद्ध कुलगीत बन गई। उर्दू के कीट्स कहे जाने वाले मजाज़ प्रगतिशील लेखकों के आंदोलन से सम्बंधित थे। उनका जन्म 19 अक्टूबर 1911 को वर्तमान अयोध्या जिले के रुदौली क़स्बा में हुआ था और 5 दिसंबर 1955 को मात्र 44 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।उन्हें लखनऊ के निशातगंज कब्रिस्तान में दफनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत क़ारी मंज़ूर आलम द्वारा पवित्र कुरान की तिलावत से मजाज़ की फ़ातिहा ख़्वानी की गई । इस मौके पर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर शकील अहमद क़िदवई ने कहा कि मजाज़ को किसी एक क्षेत्र अथवा वर्ग तक सीमित रखना अनुचित होगा। उर्दू साहित्य से प्रेम करने वाला हर व्यक्ति उनका प्रशंसक है, हालांकि पिछले कई वर्षों से एएमयू ओल्ड बॉयज़ एसोसिएशन, लखनऊ द्वारा उनकी बरसी पर फातिहा ख़्वानी की शुरुआत की गई है, लेकिन आज मौजूद अधिकांश लोग अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से सम्बंधित नहीं हैं, जो उर्दू अदब और मजाज़ की मुहब्बत का इज़हार है। प्रमुख बुद्धिजीवी परवेज़ मलिकज़ादा ने कहा कि मजाज़ को किसी एक काल या युग तक सीमित नहीं किया जा सकता।उनकी कविता की सार्थकता आज भी उतनी ही है जो साठ सत्तर साल पहले थी। जीवन ने उनसे वफ़ा नहीं की, अन्यथा बहुत संभव था कि वे इस शताब्दी के महानतम उर्दू कवि सिद्ध होते। एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष अनवर हबीब अल्वी ने कहा कि मजाज़ की शायरी में सूफ़ीवाद का रंग भी है ।अपनी बात के पक्ष में उन्होंने मजाज़ की मशहूर ग़ज़ल:

ख़ुद दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई

हाँ लुत्फ़ जब है पा के भी ढूँडा करे कोई

पेश की।

अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन स्टडीज के निदेशक डॉ. एहतिशाम खान ने कहा कि एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन लखनऊ द्वारा शुरू की गई स्वागत योग्य पहल को और बढ़ावा देने की ज़रूरत है और यह खुशी की बात है कि अन्य लोग भी अमूबा की पहल का अनुसरण कर रहे हैं एवं प्रयास से प्रेरित हो रहे हैं।

एसोसिएशन के संयुक्त सचिव आतिफ हनीफ़ ने मजाज़ की रूमानी और क्रांतिकारी शायरी पर समान रूप से महारत हासिल करने के पहलू पर विस्तार से प्रकाश डाला और उनकी कई रचनाएं प्रस्तुत कीं।

इस अवसर पर एसोसिएशन के संरक्षक डॉ. सुहेल अहमद फ़ारूक़ी, उपाध्यक्ष इंजीनियर मोहम्मद ग़ुफ़रान, कार्यकारिणी सदस्य हुसैन अहमद, वक़ार अल्वी, हैदर अब्बास, इरफ़ान अहमद, अदील अहमद सिद्दीक़ी, मंसूर आलम, मेराज अंसारी, मोइनुद्दीन, अफज़ल अहमद सिद्दीक़ी, अशफ़ाक अहमद ख़ान, तौक़ीर अहमद ख़ान , इंजीनियर अहमद हुसैन, शब्बीर हसन अली सागर, एजाज़ हुसैन समेत तमाम लोग मौजूद रहे।

By GRAM SABHA TV

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