AMU Minority Status Case: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे से जुड़े मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए नई संविधान पीठ के पास भेज दिया है। इस पीठ में तीन जज शामिल होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसे एक केंद्रीय कानून के तहत स्थापित किया गया था।
सात जजों की एक पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। 4:3 के बहुमत से यह फैसला लिया गया कि इस मामले के सभी दस्तावेजों को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश किए जाएंगे ताकि 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले की वैधता पर विचार करने के लिए एक नई पीठ का गठन किया जा सके।
अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान का हकदार है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोई भी धार्मिक समुदाय संस्थान की स्थापना कर सकता है। मगर धार्मिक समुदाय संस्था का प्रशासन नहीं देख सकता है। संस्थान की स्थापना सरकारी नियमों के मुताबिक की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर तीन जजों की नई बेंच बनेगी। यह नई बेंच ही तय करेगी एएमयू का दर्जा क्या होगा। बेंच अल्पसंख्यक संस्थानों के लेकर मानदंड भी तय करेगी।
नियमित पीठ करेगी अंतिम फैसला
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2006 में अपने फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना था। उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। जिस पर सुनवाई के दौरान साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने मामले को सात जजों की पीठ के पास भेज दिया था। इस मामले पर सुनवाई पूरी कर सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ ने एक फरवरी 2024 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साल 1967 के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट कर दिया कि कानून द्वारा बनाए गए संस्थान को भी अल्पसंख्यक दर्जा मिल सकता है। हालांकि, अंतिम फैसले के लिए पीठ ने मामले को नियमित पीठ के पास भेज दिया है।