Project Farrukhabad: काशी के समान फर्रुखाबाद जनपद में अर्धचंद्राकार बहती हुई मां गंगा नदी इसको आभा प्रदान करती हैं। इस कारण इस फर्रुखाबाद (Farrukhabad) को अपरा काशी भी कहा जाता है। जहां पांचाल घाट पर माघ के महीने में मिनी कुंभ (Mini Kumbh) नाम से विख्यात रामनगरिया का एक मेला लगता है। जहां पर धर्मावलंबी पूरे महीने गंगा तट पर निवास करते हैं। इसके साथ ही यहां विकास प्रदर्शनी और अन्य प्रदर्शनी तथा सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है।
मुगल बादशाह फर्रूखशियर के नाम पर नवाब मोहम्मद खान बंगश (Nawab Muhammad Khan Bangash) ने करीब 240 गावों को मिलाकर फर्रुखाबाद की नाम दिया था। फर्रुखाबाद और कन्नौज अब से कुछ वर्षों पूर्व तक एक ही थे जो अब दो जनपदों में विभाजित है। फर्रुखाबाद प्राचीन पांचाल प्रदेश का एक प्रमुख हिस्सा है। उत्तर और दक्षिण पांचाल अखंड भारत का प्रमुख स्थान थे जिसमे दक्षिण पान्चाल की राजधानी कंपिल थी जिसको प्राचीन काल में काम्पिल्य कहा जाता था।
प्राचीन सोलह महाजनपदों में एक काम्पिल्य सांख्य दर्शन के प्रणेता महर्षि कपिल के लिए भी विख्यात है। कपिल मुनि जिनके बारे में भगवान कृष्ण ने गीता में कहा था कि जिस प्रकार पर्वतों में हिमालय में ही हूं, नदियों में गंगा में ही हूं, वृक्षों में पीपल में ही हूं, सिद्धों में कपिल में ही हूं।
कम्पिल में ही चरक संहिता लिखी गई। भगवान श्री राम के भाई शत्रुघ्न द्वारा स्थापित रामेश्वर नाथ मंदिर कंपिल में है कहा जाता है कि शत्रुघ्न ने लवणासुर से युद्ध करने मथुरा जाते समय उस शिवलिंग की स्थापना की थी जिसकी लंका में माता सीता पूजा किया करती थी। द्रोपदी जो पांचाली नाम से भी प्रसिद्ध थी का जन्म इसी कंपिल में हुआ और पांडवों ने अपना अज्ञातवास इसी जनपद फर्रुखाबाद में बिताया था। द्रौपदी के भाई कम्पिल के राजकुमार धृष्टद्युम्न महाभारत के युद्ध मे पांडवों के सेनापति थे। जैन धर्म के तेरहवें तीर्थंकर भगवान विमलनाथ नाथ का जन्म भी कंपिल में हुआ था।
कपिल फर्रुखाबाद शाखा की सेटेलाइट शाखा कायमगंज से मात्र दस किलोमीटर दूर अत्यंत दर्शनीय स्थल है। यहाँ द्रौपदी कुण्ड ,द्रुपद टीला ,मुगल घाट ,स्वतत्रता संग्राम का साक्षी झन्नाखार का पुल आदि दर्शनीय स्थल हैं । संकिसा अर्थात प्राचीन संकाशय नगरी भी यही फर्रुखाबाद शाखा से 30 किलोमीटर दूर है जहां भगवान बुद्ध ने स्वर्ग से आकर उपदेश दिया था । वर्तमान में संकिसा में विविध बौद्ध देशों के द्वारा बनवाए गए भव्य मंदिर है जिनमें चीन ,कंबोडिया थाईलैंड ,जापान ,म्यांमार इत्यादि देश शामिल है । यहां सम्राट अशोक के बनवाये कुछ शिलालेख हैं और कुछ मूर्तियां भी है।
फर्रुखाबाद में श्रृंगिरामपुर नाम का प्रसिद्ध तीर्थ है जहां श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि है, जिन्होंने भगवान राम के जन्म के समय राजा दशरथ के यहाँ पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था । जिसके बाद प्रभु राम और उनके भाइयों का जन्म हुआ ।अपने अत्यंत दुर्लभ प्राचीन गंगा घाटों के लिए श्रृंगिरामपुर एक दर्शनीय स्थान है । जिसके आसपास च्यवनऋषि जिन्होंने चवनप्राश बनवाया ,धौम्य ऋषि इत्यादि के आश्रम हैं।
फर्रुखाबाद में विश्व प्रसिद्ध नीवकरोरी गांव है जहां के बाबा नीवकरोरी विश्व विख्यात हैऔर जिनके आश्रम नैनीताल में कैंची धाम मथुरा ,लखनऊ ,चेन्नई और विदेशों तक में है लेकिन मूल नीवकरोरी गांव फर्रुखाबाद में ही है ,जहां बाबा की तपोस्थली है । नीव करोरी बाबा के भक्त ऐसा कहा जाता है कि मार्क जुकरबर्ग और स्टीव जॉब जैसे लोग भी हैं।
फर्रुखाबाद नगर में पांडवों द्वारा अज्ञातवास में बनाया गया पांडवेश्वर नाथ मंदिर है और द्रोणाचार्य द्वारा स्थापित गुरुग्रामेश्वरी देवी मंदिर भी है । फर्रुखाबाद के गँगा तट पर बसे प्राचीन विश्रांत घाट उत्तर भारत के सबसे सुंदर घाट थे ।जो मिनी पोर्ट थे और जहाँ गँगा के जल मार्ग से व्यापार भी होता था।
हजरत शेख मखदूम महमूद बर्राक लंगर जहां सोहारवर्दी रहमतुल्ला अलेह साहब की विश्व प्रसिद्ध दरगाह यहां फतेहगढ़ शाखा से 5 किलोमीटर दूर शेखपुर में है। फतेहगढ़ में कोहिनूर हीरा महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र से लिया गया था जो आज लंदन में है महाराजा रणजीत सिंह की बहू महारानी जिंदा कौर के नाम पर यहां पर गंगा तट पर रानी घाट है। फतेहगढ़ में आध्यात्मिक गुरु लाला रामचंद जी महाराज की समाधि है जहां पर गुड फ्राइडे को पूरे विश्व से लोग आते हैं।
फर्रुखाबाद संगीत घराना और हाजी विलायत अली खान साहब पूरे दुनिया में प्रसिद्ध है।यह घराना भारत के प्रसिध्द चार संगीत घरनि में एक है ।यहां पर डॉक्टर जाकिर हुसैन ,खुर्शीद आलम खान , रामनारायण आजाद क्रांतिकारी, महीयसी महादेवी वर्मा ,डॉ मोहन अवस्थी ,आचार्य वचनेश मिश्र जैसे महान कवियों ,ठुमरी सम्राट ललन पिया ,महान शायर गुलाम रब्बानी तांबा , अनवर फर्रुखाबादी जैसे लोगों का जन्म हुआ।
स्वतंत्रता संग्राम में यहां सभी धर्म और जातियों के लोगों का योगदान चिर स्मरणीय है गौतम बुध्द, सुभाष चंद्र बोस , चंद्रशेखर आजाद , सरदार भगत सिंह ,योगेश चटर्जी जवाहरलाल नेहरू , गामा पहलवान दारा सिंह , पृथ्वीराज कपूर जयप्रकाश नारायण , महात्मा गांधी आचार्य विनोवा भावे का यहां आगमन हुआ।
डॉ राम मनोहर लोहिया ने इसे अपनी कर्म स्थली बनाया इस प्रकार हम पाते हैं कि फर्रुखाबाद की पवित्र भूमि सर्व धर्म समभाव की सही परिभाषा को करती है। कृषि, जरदोजी, हस्तशिल्प व्यापार, सैनिक और खिलाड़ियों के सामाजिक ताने-बाने हैं यहां का सधवाड़ा छपाई के लिए प्रसिद्ध है यहाँ की ब्लॉक प्रिंटिंग को सरकार ने वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट के रूप में चिन्हित किया है। साध समाज के लोग छपाई का कार्य करते हैं यहां के लिहाफ़, प्रिंटेड चादरे भारतवर्ष में ही नहीं विदेशों तक में मशहूर है। फर्रुखाबाद में जरदोजी का भी बड़ा कार्य होता है यहाँ के लहँगे और साड़ी मुम्बई फिल्मों के परिधान हेतु मंगवाई जाती हैं। यहाँ की दालमोठ नमकीन, भुने आलू, चाट पापड़ी बहुत प्रसिद्ध है। यहां राजपूत रेजीमेंट सेंटर और सिख लाइट इन्फेंट्री जैसे सेना के दो महत्वपूर्ण भर्ती केंद्र हैं
फर्रुखाबाद के कायमगंज क्षेत्र में आम के बहुत बड़े-बड़े बाग है जहां से आम पूरे देश में भेजा जाता है । भौगोलिक क्षेत्र में यह लखनऊ के मलिहाबाद से बड़ा आम उत्पादक क्षेत्र है। कायमगंज में ही पौधों की अनेको नर्सरी है जहां से हॉर्टिकल्चर अर्थात शोभा वाले पौधे पूरे भारतवर्ष में भेजे जाते हैं यहां तक कि आगरा के ताज गार्डन और दिल्ली के मुगल गार्डन तक में पौधे कायमगंज से भेजे जाते हैं । फर्रुखाबाद में आलू का उत्पादन बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है और इसीलिए यहां कोल्ड स्टोरेजों की संख्या भारतवर्ष में किसी भी जनपद से ज्यादा थी। फर्रुखाबाद में और भी बहुत कुछ है जिसकी चर्चा हम आगे के अंकों में करते रहेंगे।
-भूपेन्द्र प्रताप सिंह
समन्वयक, अभिव्यंजना
संजोजक, गंगा विचार मंच, फर्रुखाबाद