Nawab Rashid Khan: हर शहर की अपनी कहानी होती है, लेकिन कुछ कहानियाँ सिर्फ मिट्टी और दीवारों से नहीं, बल्कि जुनून और बहादुरी से लिखी जाती हैं। यह कहानी है एक नवाब की, जिसके शिकार खेलने का शौक एक पूरे शहर की नींव बन गया। यह कहानी है उस अजीब घटना की, जहाँ कुत्तों को सियारों ने हरा दिया, और उस मिट्टी की, जिसकी तासीर ने नवाब की सोच को ही बदल दिया।
फ़र्रुख़ाबाद (Farrukhabad) ज़िले के कायमगंज (Kaimganj) में स्थित मऊ रशीदाबाद (Mau Rashidabad) आज सिर्फ एक गाँव है जबकि, 17वीं सदी में एक नवाब के शौक़, एक अजीबोगरीब घटना और इस मिट्टी की अनोखी तासीर का जीता-जागता सबूत है। यह नवाब रशीद खां (Nawab Rashid Khan) के शिकार के जुनून और एक अकल्पनीय घटना की वजह से आबाद हुआ था, जिसके किस्से आज भी इस मिट्टी में गूंजते हैं।
17वीं सदी की जब अकबराबाद (Akbarabad) सूबे के नवाब रशीद खां को शिकार का गहरा शौक था। उनकी रियासत में, शमशाबाद (Shamshabad) का इलाका उनके पसंदीदा शिकारगाहों में से एक था। लेकिन एक दिन, एक ऐसा वाकया हुआ, जिसने न सिर्फ उनकी सोच को बदला, बल्कि एक पूरी नई बस्ती को ही जन्म दिया। एक ऐसी घटना, जो आज भी उस इलाक़े की पहचान है।
जब सियारों ने किया कमाल
उस दिन, नवाब के सबसे बेहतरीन और सबसे खतरनाक शिकारी कुत्तों को सियारों के एक झुंड ने घेर लिया। लेकिन जो हुआ, उस पर किसी को यकीन नहीं आया। आमतौर पर डरपोक माने जाने वाले सियारों ने नवाब के कुत्तों को सिर्फ हराया ही नहीं, बल्कि उन्हें मार गिराया। नवाब रशीद खां इस दृश्य को देखकर दंग रह गए। उनके मन में बस एक ही सवाल था – इस मिट्टी में ऐसा क्या है, जो इन जानवरों को इतनी हिम्मत देता है?
इस रहस्य को जानने के लिए उन्होंने ज्ञानी लोगों, पीर-फकीरों और ज्योतिषियों से सलाह ली। सभी ने एक ही जवाब दिया: “हुजूर, यह इस मिट्टी की तासीर है। इसकी रगों में बहादुरी दौड़ती है।”
बहादुरी की मिट्टी पर ‘मऊ रशीदाबाद’
यह सुनकर नवाब रशीद खां (Nawab Rashid Khan) इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तय कर लिया कि वह इस जमीन को यूँ ही नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने इस मिट्टी की बहादुरी को इंसानी बहादुरी से मिलाने का फैसला किया।
उन्होंने अफगानिस्तान से पठान समुदाय के दिलेर लोगों को बुलवाया और इस जगह पर बसने का न्योता दिया। धीरे-धीरे, यहाँ नए मोहल्ले आबाद हुए, जैसे अताईपुर, लालबाग, बड़ा बाज़ार और कोट। इस नई आबादी और नई पहचान को नवाब ने अपने नाम पर एक नया नाम दिया: मऊ रशीदाबाद। यह सिर्फ एक शहर नहीं था, बल्कि नवाब रशीद खां के दूरदर्शिता और उस दंतकथा का जीता-जागता सबूत था, जिसमें सियारों ने कुत्तों को हरा दिया था।
नवाब ने अपने जीवनकाल में, यानी 1607 ई० में, यहीं एक शानदार मकबरा (Tomb of Nawab Rashid Khan) भी बनवाया था। जब 1649 में उनका निधन हुआ, तो उन्हें इसी मकबरे (Nawab Rashid Khan Tomb) में दफनाया गया, जहाँ वह आज भी इस शहर की कहानी का हिस्सा बनकर सो रहे हैं। इस तरह, एक नवाब के शिकार के जुनून ने एक पूरे शहर की नींव रखी, जो आज भी उस बहादुरी की दास्तान सुनाता है।